बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के मसले पर लगभग पूरा विश्व कोपेनहेगन में जमा है। 192 देशों के प्रतिनिधि अपनी-अपनी चिंता जाहिर करने और दूसरों को जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाने वहां मौजूद हुए हैं। या यूं कहें कि कोपेनहेगन में अपना दुखड़ा रोने और सामने वाले से उसकी भरपाई निकलवाने का अच्छा मंच सजा हुआ है। हरेक देश खुद को निरीह-निर्दोष साबित करने में लगा है।
खैर विश्व स्तर पर क्या-क्या किया जा सकता है इस बात पर बहस, चिंता और, अ-निर्णय का दौर जारी है। पर सभी इस बात पर जरूर सहमत दिखते हैं कि प्रयास अपने और दूसरे दोनों स्तरों पर किया जाना चाहिए। दूसरों की जिम्मेदारियां तय करना तो हमारा प्राकृतिक गुण है। पर अपना स्तर कभी याद नहीं आता। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मैं विश्व स्तर पर इस तरह के बैठकों को निरर्थक कह रही। बड़ पैमाने पर हो रहे नुकसान को नियंत्रित करने के लिए यह बेहद जरूरी है। पर छोटे स्तर केप्रायासों के बिना नहीं।
कई लोग इस बात को लेकर चिंतित भी दिखते हैं, तो वो ये सोचकर ज्यादा परेशान रहते हैं कि आखिर वो क्या कर सकते हैं? यह भी अच्छा मजाक है। पर्यावरण प्रदूषण और बढ़ते तापमान को रोकने के लिए आम इंसान क्या कर सकता है, यह एक स्कूल का बच्चा भी बता सकता है। इसलिए अगर कोई इतना ही परेशान है अपनी जिम्मेदारियों को लेकर, तो अपने घर के किसी बच्चे से एक क्लास लेने में क्या बुराई है।
अपनी रोज की उसी दुनिया में राह चलते, हर दिन के उन्हीं कामों केबीच अगर आप एक बार इस नजर से सजग होकर देखें, तो आपको भी वजहें और उसका हल दोनों आसानी से नजर आ जाएंगे।कल सुबह जब आप उठे, तो सूरज की ताजा रौशनी के लिए घर की खिड़कियां और दरवाजे खोलने के बाद लंबी अंगड़ाई के बीच घर के ट्यृब और बल्बों पर भी नजर दौड़ाएं। कहीं न कहीं सूरज की रौशनी में खुद की रौशनी धूंधली पाता कोई बल्ब जलता जरूर दिख जाएगा।
आप अपने स्तर से बहुत कुछ कर सकते हैं, पर कई बार इसमें अगर किसी का फायदा प्रभावित होता है, तो जरूर मुश्किल खड़ी हो जाती है। मैं दिल्ली के एक छोटे से गल्र्स पीजी में रहती हूं। वहां फ्रीज की भी सुविधा है। हालांकि इसका बिजली बिल हमें ही भरना होता है। 5 रुपये यूनिट। हर महीने एक छोटी सी आमदनी पाने वाले किसी भी इंसान के लिए फिजूल में खर्च हुआ एक-एक रुपया बहुत मायने रखता है। इस ठंढ़ में जब यह लगने लगा कि फ्रीज का खर्च फालतू होता जा रहा है और इसकी जरूरत नहीं है। तो कुछ लड़कियों ने मिलकर पीजी के मालिक से कुछ महीनों के लिए फ्रीज बंद करने की गुजारिश की। पर लैंडलॉर्ड को 5 रुपये प्रति यूनिट की आमदनी बंद होना कैसे बर्दाश्त होता। फ्रीज क्या बंद होता, हमें बाहर निकल जाने का फरमान सुना दिया गया। पर बहुमत की वजह से कम से कम हमें पीजी से निकाला नहीं गया। पर फ्रीज का क्या? फ्रीज तो आज भी चल रहा है, पर इसके खिलाफ जाने वाले लोगों को उससे बेदखल कर दिया गया है।
ये तो था मेरा घर, अब मेरा ऑफिस। यहां एक बहुत ही आरामदायक माहौल देने की पूरी कोशिश की गई है। बाहर दो-दो स्वेटर की जरूरत होने पर भी अंदर आप गर्मियों के कपड़े पहन कर आराम से घूम सकते हैं। स्वेटर या जैकेट पहन के घूसे, तो बिना उतारे काम नहीं कर सकते। पसीने छूटने लगते हैं। मस्त गुनगुना मौसम।
पर अंदर का तापमान इस कदर नियंत्रित करने में किस कदर एयर कंडिशन और हिटर का इस्तेमाल किया जाता होगा, इसका अंदाजा आप भी लगा सकते हैं।दिल्ली के कर्मिशियल इलाकों में ऐसे ऑफिसों की गिनती करना मुश्किल है। अब इन ऑफिसों में अच्छी तनख्वाह उठाने वाले लोग क्या घर पर ऐसा गुनगुना आनंद नहीं चाहेंगे। एसी, हिटर और गीजर के बिना घर भी कोई घर होता है? क्यों?
घर और ऑफिस केबीच का हिस्सा तो मैंने अब तक जोड़ा ही नहीं। दिल्ली की नसें, यहां की बसें। पर अब ये भी थोड़ी महंगी हो गई हैं। लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा देने के लिए सरकार बसों की खेप पर खेप शुरू कर रही है। वहीं, किराया बढऩे के बाद नजदीकी दूरी का सफर करने वालों को बस की बजाए अपनी गााड़ी या बाइक ज्यादा सस्ती और आसान लग रही है। इस तरह अब रास्तों पर दोहरा बोझ पड़ रहा है।अब इसके बाद कोई विश्व स्तर की बैठक और बड़े-बड़े नेताओं की बातों और कोपेनहेगन पर हैरान-परेशान होता दिखता है, तो किसी कमर्शियल बॉलीवुड फिल्म का मेलोड्रामा सीन आंखों के सामने उभर आता है।
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें
कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
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इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये
लेख अच्छा है, लेकिन थोड़ा छोटा और स्पष्ट हो, तो और भी अच्छा। ब्लाग का नाम आकर्षक लगा...
ReplyDeleteSwagat hai! U r very articulate but slightly discursive...hope u don't mind my saying so!
ReplyDeleteAbhyaspoorn aalekh!
ReplyDeleteSwagat hai!
khub likh.narayan narayan
ReplyDeleteक्रांतिकारी विचार ..........
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
ReplyDeletepls visit
http://dweepanter.blogspot.com
सही लिखा है
ReplyDeleteआप सभी का हौसलाअफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। उम्मीद करूंगी कि आपलोगों का साथ आगे भी इसी तरह बना रहेगा।..
ReplyDeletesamsamyik vishay par achee rachna ,,aaraam ke liya ped kaat kar kursi banaya ,itne ped kaat diye ki aaraam haram ho raha hai ..
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