पशिचम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और राजनीति के महान स्तंभ ज्योति बसु ने अपना शरीर दान कर दिया है। उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जएगा। उनकी अंतिम यात्रा चल रही है जो अस्पताल में पूरी होगी। एक महान राजनेता का जाते-जाते एक महान कदम।
'महान' कदम, इसलिए नहीं कि वो एक बड़े नेता थे। आज के जमाने में सामाजिक कल्याण के लिए किए गए एक छोटे से प्रयास को भी मैं महान कहूंगी। चाहे वो कोई राजनेता हो या फिर कोई नामी हस्ति या फिर एक आम इंसान। इस तरह का प्रयास हमेशा सराहनीय होता है।
हाल ही में सचिन तेंडुलकर भी पानी बचाने की मुहीम से जुड़े हैं। सचिन भी इस अच्छे काम से जुड़कर काफी खुश हैं। इस तरह के कई सामाजिक प्रयासों से नामी-गिरामी हस्तियां जुड़ती रहती हैं।पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम से अमिताभ बच्चन काफी दिन से जुड़े हैं। 'दो बूंद जिंदगी के' वाक्य को सुनते ही अमिताभ बच्चन का चेहरा सामने आ जाता है। उनके साथ शाहरुख और सचिन भी इस कार्यक्रम से जुड़े। शाहरुख खान ने उस वक्त अमिताभ बच्चन के साथ यह विज्ञापन किया था जब उन दोनों के बीच मनमुटाव के खासे चर्चे थे। पर सामाजिक मसले पर वे साथ आए। यह काफी सराहनीय है।
'आप अपने जाने के बाद दुनिया को क्या देकर जाएंगे?' यह सवाल मैं नहीं ऐश्वर्या राय किया करती थी। काफी लंबे समय तक नेत्रदान के लिए उनका यह विज्ञापन चैनलों पर आता रहा। एड्स जागरुकता कार्यक्रम से तो तमाम सेलिब्रिटीज जुड़े।पर इस तरह के कायक्रमों से हस्तियां तो जुड़ रही हैं, लेकिन कारर्पोरेट दबाव ऐसे कार्यक्रमों को भी नहीं छोड़ता। इस तरह के विज्ञापन सिर्फ दरदर्शन पर ही आते हैं। बड़े मनोरंजन चैनलों पर शायद ही कभी आपको ऐसा कुछ देखने को मिले। इस वजह से लोगों तक खासकर ऐसे लोग लोग ऐसे प्रयासों में बड़ी मदद दे सकते हैं, वो इनसे अछूते ही रह जाते हैं।
हाल फिलहाल में एक नया विज्ञापन तमाम चैनलों पर देखने को मिल रहा है। विज्ञापन में कुछ भी नहीं है। यह बिल्कुल सादा है। किसी टाइपराइटर की तरह स्क्रीन पर दो वाक्य लिखे जाते हैं। दरअसल यह विज्ञापन नहीं, विज्ञापन के खिलाफ विज्ञापन है। इसमें कहा जाता है कि अगर आपको ऐसा लगता है कि कोई विज्ञापन झ़ठा प्रचार कर रहा है और आपको धोखा दे रहा है, तो आप इसके खिलाफ शिकायत कर सकते हैं। कुछ अर्से पहले टीवी अदाकारा प्रिया तेंडुलकर ऐसा ही विज्ञापन किया करती थी। पर उनके मरने के बाद इससे कोई नहीं जुड़ा और विज्ञापन स्क्रीन से गायब हो गया। अब फिर से यह प्रयास शुरू हुआ है जो बहुत अच्छा है। इसके असर के इंतजार में.....
खामोश जुबां पर एक थरथराहट, जमीं नब्ज में थोड़ी गर्माहट, उंगलियों में एक कलम, और हाथों में लिखने की ताकत, कहते हैं काफी है क्रांति के लिए... क्या वाकई?
Tuesday, 19 January 2010
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The longing for the impossible
What is containment in life.. when there is lesser yearning for things and an usual sense of satiated desires. But, what an strange feeling ...

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What is containment in life.. when there is lesser yearning for things and an usual sense of satiated desires. But, what an strange feeling ...
good
ReplyDeleteinhi ko dekh kar hum sab me kuch khatpat hogi...........ithink hum sabhi ko bhi eye donation,save water,save earth.....jaise tamam progms. me part lena chahiye.....
ReplyDeletesukh sagar
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