Saturday 19 December 2020

सपनें...

 




फिर गिरा एक सपना 

टूटते तारे जैसा

मैं कोसती रही आँखों को

मेघ सी काली कहलाती हो

और एक तारा भी न संभाल सकी

उस आसमान की तरह। 

 एक और सपना 

फिर फिसला मोती बन के

मैं कोसती रही आँखों को

सीप सी चमक पर इतराती हो

और एक मोती भी न सहेज सकी

उन सीपियों की तरह। 

 मुझे सपनों के टुकड़े चुनती देख 

बोली मेरी आँखें

"तुम चुनती हो टुकड़े और

किरचें चुभती हैं मुझको,

हज़ार किरचों को अपनी सीपी में समेट

मैं बनाउंगी

हज़ार तारे, हज़ार मोती

जिन्हें तुम सजाना अपने सिर के ताज़ में,

और...

और.. कोई सपना होगा टूटने के लिए..

फिर चुनना तुम हज़ार टुकड़े

और मैं बुनुंगी

एक सपने से

हज़ार तारे, मोती

हज़ार नए सपनें"...

 

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